स्वतंत्रता दिवस 2025: आज के भारत की सच्चाई पर प्रधानमंत्री का भाषण

स्वतंत्रता दिवस का भाषण: कल की बात छोड़कर, आज की हकीकत से सामना
प्रवेश
यह स्वतंत्रता दिवस, जब सभी “विकसित भारत 2047” की तस्वीर सुनने के लिए उत्सुक हैं, तो मैं चाहता हूँ कि प्रधानमंत्री इस बार एक अलग रुख अपनाएँ—दो दशक दूर की योजनाओं को पीछे छोड़कर, भारत के आज की वास्तविकताओं को सामने रखें।
1. “अच्छे दिन” का जश्न—क्या बजे थे घड़ियाँ?
- वादा: 2014 में “अच्छे दिन” का आश्वासन, जल्दी बाद “नया भारत”, फिर “अमृत काल”, और अब “विकसित भारत” तक – पर यह सब केवल माहौल बनाने के लिए था। (ThePrint)
- वास्तविकता: अच्छे दिन कुछ चुनिंदा लोगों के लिए आए, आम जनता के लिए नहीं।
2. असमानता—स्वतंत्रता से ‘बिलियनेयर राज’
- वेतन असंतुलन: 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, 1% लोग देश की कुल संपत्ति का 40% नियंत्रित करते हैं, वहीं नीचे 50% के पास सिर्फ 3–4% ही है। (ThePrint)
- आय स्थिरता: सौरभ मुखर्जी (Marcellus Investment Managers) के अनुसार, आम जनता की आय ठहराव की स्थिति में है, और जो “खपत बूम” दिखता है, वह केवल क्रेडिट से प्रेरित है—not टिकाऊ। (ThePrint)
- खर्च की कमी: Blume Ventures ने पाया कि 1 अरब भारतीय (ना 1.4 अरब में से लगभग 90%) के पास डिस्क्रेशनरी खर्च के लिए पैसा नहीं है—वे सिर्फ बुनियादी ज़रूरतों तक सीमित हैं। (ThePrint)
3. अमीर भी खुश नहीं — पलायन की बढ़ती संख्या
- 2017–22 में, 30,000 से अधिक HNIs (High Net-Worth Individuals) ने भारतीय नागरिकता छोड़ दी।
- 2024 में 4,000 से ज़्यादा करोड़पतियों ने ऐसा करने की संभावना जताई, और 2024 में लगभग 2 लाख भारतीयों ने नागरिकता छोड़ी—यह चिंता का विषय है। (ThePrint)
4. घोषणाओं की भरमार, पर धरातल पर बिकट असफलताएँ
नोटबंदी (2016)
4 घंटे की नोटिस पर रातों रात ₹500 और ₹1,000 के नोट काम का न रह जाना—काला धन मिटाने का वादा, अगर 50 दिनों में न सफल हुआ तो फाँसी की कसमें। (ThePrint)
- आज भी नकदी वापसी पर सवाल—दिल्ली के एक हाई कोर्ट जज के घर बड़ी मात्रा में नोट पाए गए—नोटबंदी की विफलता को उजागर करते हैं। (ThePrint)
स्मार्ट सिटी मिशन (2015)
- कई “स्मार्ट” घोषित शहर आज पानी भराव और ढहते पुलों से जूझ रहे हैं—वडोदरा में पुल गिर गया, पटना की फ्लाईओवर ढहरा, दिल्ली में भारी जल जमाव और राजस्थान की सरकारी स्कूल की छत गिरने से सात बच्चों की जान चली गई। (ThePrint)
- बजट से भव्य उद्घाटन, लेकिन रख‑रखाव और नियमित निरीक्षण की कमी एक बड़ी विफलता है।
5. किसानों का मृग्रदंश
- 2016 में किसानों की आय को छह वर्षों में दोगुना करने का वादा—कई राज्यों में यह पूरा नहीं हो पाया, यहां तक कि भाजपा‑शासित राज्यों में भी। (ThePrint)
- विपक्ष‑शासित राज्यों को अनुदान रोकने की प्रवृत्ति—विशेष रूप से पश्चिम बंगाल को ₹1.7 लाख करोड़ बकाया, जिसमें MGNREGA और PMAY शामिल हैं। यह सहयोगात्मक संघवाद नहीं, पक्षपातपूर्ण संघवाद है। (ThePrint)
किसान आंदोलन और आत्महत्या
- 2020 के फार्म कानूनों के खिलाफ आंदोलन में लाठीचार्ज, आंसू गैस, किसानों को “व्यावसायिक प्रदर्शनकारी” कहकर बदनाम किया गया। (ThePrint)
- 2022 में किसान आत्महत्या की संख्या 11,000 से अधिक रही। NCRB की रिपोर्ट नियमित प्रकाशित नहीं हो रही—2023 की रिपोर्ट 2024 तक नहीं आई। (ThePrint)
6. “संकलित व विकास”—लेकिन पक्षपाती और असहिष्णु व्यवहार
- नारा: “सबका साथ, सबका विकास” — लेकिन धार्मिक विभाजन और अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न आम बात है।
- हाल के घटनाक्रम: केरल की दो कैथोलिक नन पर मानव तस्करी का झूठा आरोप (छत्तीसगढ़ में), महाराष्ट्र में मीट व्यापारियों पर गौ रक्षा समूहों का हमला, उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की सम्पत्तियों को बुलडोज़र से ध्वस्त किया जाना (जिसे सुप्रीम कोर्ट ने “अस्वीकार्य” कहा)। (ThePrint)
7. युवा, शिक्षा, और भ्रष्ट स्कूलिंग
- युवा शक्ति के वादे के बावजूद:
- हाल ही में SSC की परीक्षा में 70+ पेपर लीक हो चुके हैं, दिल्ली में परीक्षार्थियों ने प्रदर्शन किया। (ThePrint)
- “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”: 2022 तक Nirbhaya Fund के 30% अनुपयोगित रहे; 2021 में एक संसदीय समिति ने बताया कि राशि का 70% से ज़्यादा हिस्सा विज्ञापन पर खर्च हुआ। अत्याचार कम नहीं हुए, खासकर भाजपा‑शासित राज्यों में। (ThePrint)
8. संस्थाओं का नियंत्रण—लोकतंत्र का क्षरण
- लगभग 95% ED (Enforcement Directorate) के मामलों में विपक्षी नेताओं पर आधारित हैं; जो भाजपा में शामिल हुए, उन्हें क्लीन चिट मिली—“वाशिंग मशीन राजनीति” का नया मॉडल। (ThePrint)
- संसद में प्रधानमंत्री की उपस्थिति न्यूनतम—उन्होंने प्रश्नकाल में कभी भाग नहीं लिया; Operation Sindoor पर भी कोई जवाब नहीं दिया। (ThePrint)
- विदेश नीति में ध्यान सिर्फ फोटो-ऑप और स्लोगन—“Abki Baar Trump Government”, “Namaste Trump” जैसे घोषणाएं। लेकिन UN या रूस‑यूक्रेन/गाज़ा मसलों पर चुप्पी ने अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता खोई। (ThePrint)
9. मीडिया के साथ संबंध—पारदर्शिता का अभाव
- पिछले 11 वर्षों में प्रधानमंत्री द्वारा एक भी खुली प्रेस कांफ्रेंस नहीं आयोजित की गई—अद्वितीय रिकॉर्ड। (ThePrint)
अंत में—नाराजगी का एक पात्र: नेहरू?
संक्षेप में, सारे वादों, घोषणाओं, प्रदर्शनों, प्रचार‑यात्राओं, PR कैंपेन और योजनाओं के पीछे की असफलता की जड़ एक आदमी: पंडित जवाहरलाल नेहरू। पूर्व प्रधानमंत्री ने हमेशा ही मेरे योजनाओं और अभियानों को विफल कर दिया है—इसलिए दोष मुझ पर मत लगाइए, नेहरू पर लगाइए।
स्वतंत्रता दिवस भाषण—एक वास्तविक परिप्रेक्ष्य की दरकार
अगर प्रधानमंत्री इस स्वतंत्रता दिवस पर उपरोक्त सच्चाइयों को ईमानदारी से स्वीकारते हुए जनता से संवाद करें—विवादों को दरकिनार कर, आने वाले कल को छोड़कर, आज का भारत समझें—तो यह भाषण ना केवल देश को जोड़ने वाला होगा, बल्कि जन‑विश्वास को फिर से स्थापित करने वाला होगा।